सत्ता
विधा :- कविता
दिनांक:-13/01/2018
सादर प्रेषित दी गई शब्दावली संग
नाओनोश – बहुत शराब पीना
नक्बत – दुर्भाग्य
निगेहबाँ – पहरे दार रक्षक
महफ़िल – सभा
सनक – पागलपन
प्रभुत्व – अधिकार
फ़ाखिर – अभिमानी
विमुक्ति – आजादी
बाज़ीचा – खिलौना या तमाशा
नताईज – नतीजा या परिणाम
अंधेर नगरी चौपट राजा,
हुए निगेहबां खुद नाओनोश।
फ़ाखिर सजा सनकी महफ़िल,
भरी नक्बत है खुद आगोश।
पत्ते पर पत्ते फेंक जुआरी,
लगा रहे बाज़ी,तन भर जोश।
अंधेरी रात यूंही बेदार करते,
रंग बदलें सियासी गिरगिटी पोश।
स्वतंत्र देश का देख हाल यह,
जन- जन भरा हृदय में रोष।
सुरा सुन्दरी की महफ़िल में,
जीते हैं साहब, जीवन ठाठ।
सत्ता के नशे में मदहोश हैं सारे,
देश हित का नहीं सीखा पाठ।
इनका नताईज अलग ही प्यारे,
कहते ये सोलह दूनी आठ।
प्रभुत्व- विमुक्ति फिर खो देंगे ये,
सुनों,फिर से होगी बंदर बांट।
क्यों खुद ही हम सिंहासन पर बैठाते,
राष्ट्र हितैषियों की जगह उल्लू काठ।
बगल में खंजर, है अलग ही मंजर
पहने शीश अनोखा स्याही ताज।
लगा रोज़-नित नया दांव पेंच ये,
खोखला करते सभ्य समाज।
राजनीति महज़ बनीं बाज़ीचा,
यहां सजा है देखो जंगल राज।
कभी सड़क पर आलू फिंकते,
और कभी फिंकते टमाटर-प्याज।
बदलाव बनों तुम खुद ही ‘नीलम’
तभी बदलेगा सुसभ्य समाज।
नीलम शर्मा