सत्ता के लालच
सत्ता के लालच
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सत्ता के लालच म,
देख कइसे हहाकार मचगे।
खरीद फरोद करके,
सफ्फा नीचे गिरगे।
ये ह का बिकास कराही,
नेता तो कुरसी म जमगे।
पाँच बछर ल बईठके खाही,
एकर गोड़ हाथ ह लमगे।
ये सिधवा मन ल नेता जी,
कब तक तैहर ठगबे।
जोन दिन अपन हक ल जानही,
ओ दिन तैहर हाथ ल मलबे।
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डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभावना (छत्तीसगढ़)
मो. 8120587822