सती
थी दक्ष की सुता सती,त्रिलोकी को निहारती,
स्वीकारा शिव को पति,उचारे शिवम-शिवम।
माने न पिता की बात, समझाती उसे मात,
बीत जाए सारी रात, रहते नैन नम-नम।
शिव ले बारात आये,भूत-प्रेत साथ लाये,
बाघंबर धार आये, डमरू बाजे डम-डम।
देख शमशान योगी,कहे सब उसे जोगी,
बेटी न प्रसन्न होगी,भेजें न संग हम-हम।
सती हंसे मन मन,डरते थे जन-जन,
वार बैठी तन-मन,हदय मची धम-धम।
मन चाहा वर पाया,सती मन भर आया,
भोले की है ये तो माया,है नहीं भरम-भरम।
यज्ञ का था अवसर,न बुलाए शिव पर,
शिवा आई मात घर,हो खड़ी सहम-सहम।
देखा स्वामी अपमान,जाग उठा स्वाभिमान,
कर दिए प्राण दान,यज्ञ में भसम-भसम।
स्वरचित-
गोदाम्बरी नेगी
हरिद्वार उत्तराखंड
20अप्रैल2022