सताता है मुझको मेरा ही साया
कि जब से होश संभाला मैंने तो खुद को यूं अकेला पाया।
मौत से डर नहीं लगता, पर सताता है मुझे मेरा ही साया..
आंखें रोती है मेरी रातों को यूं फूट-फुटकर,
दिन कटते है मेरे लोगो से यूं झूठ बोलकर।
प्यार से दो पल बातें करता कोई, फिर खफा हो जाता है
खुदा खुशी देकर फिर, सारी खुशियाँ ले जाता है।।
सच और फ़रेब का भेद आखिर मैं क्यों समझ न पाया।
ना जाने क्यों सताने लगा है मुझे मेरा ही साया।।
जिंदगी कैसे कट रही है इसका कोई जवाब नहीं है,
दिन भर क्या करता हूं उसका कोई हिसाब नहीं है।
मेरी तमन्ना खत्म होगी, या मुझे ही किसी ने मार दिया है
मैं क्यों आया हूँ इस धरती पर
मुझे किसने ये संसार दिया है।।
मन में है हजारों सवाल, पर उसे मैं कभी सुलझाय न पाया।
आखिर क्यों सताने लगा है मुझे मेरा ही साया।।