सतयुग की झलक दिख जाए !
सतयुग की झलक दिख जाए !
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जब कोई ख़ुश कभी होता है
तो मुझे भी ख़ुशी मिलती है !
और कोई दुखी जब होता है
तो मैं भी दुखित हो जाता हूॅं !!
और इसी तरह की भावना का ,
सबसे ही अपेक्षा मैं रखता हूॅं !
पर करते कोई जब अवहेलना ,
तो दुखित मैं भी हो जाता हूॅं !!
खुशियाॅं औरों की हो या अपनी ,
खुशी तो बस, खुशी ही होती है !
तुलनात्मक दोनों ही स्थिति में ,
कोई जीवात्मा ही तृप्त होती हैं !!
औरों की भलाई में जो कोई ,
खुद का हित भी देखते हैं !
वैसे जीव तो सचमुच में ही ,
देवता का अंश ही होते हैं !!
गर हम सब ये चाह लें तो….
कलियुग भी सतयुग हो जाए !
ऐसी इच्छा शक्ति जगा लें तो….
हर प्राणी ही सच्चा बन जाए !!
ना रहे कोई भी रावण कहीं पे ,
बच्चा-बच्चा ही राम बन जाए !
झूठ की बुनियाद पे खड़ा हर वृक्ष ,
अब सच्चाई का ही फल दे जाए !!
रावण के युग का अंत होकर ,
रामराज्य ही क्यों ना बन जाए !
क्यों नहीं हम सब ही मिलकर ,
ऐसा ही करिश्मा कुछ कर जाएं !!
आज हरेक की जवाबदेही ये हो….
बेईमानी की जड़ नहीं पनप पाए !
सच्चाई के मार्ग पे सब कोई चलकर ,
सतयुग की झलक अब दिख जाए !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 24 अक्टूबर, 2021.
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