सतगुरु से जब भेंट हुई
सतगुरु से जब भेंट हुई तो,
मन हृदय बदल गया,
खुल गये चक्षु ज्ञान मेरा,
जब अहंकार मिटा।
सतगुरु से जब भेंट हई तो,
कुछ भी ना गैर ना अपना रहा,
तन मन धन सब बैर मिटा,
ज्ञान का दीप जला।
सतगुरु से जब भेंट हई तो,
जग का सत्य सुना,
अँधियारा मन के भीतर से,
दूर एक क्षण में हुआ।
सतगुरु अब बता दिया ,
वो मार्ग कैसे मिले,
आंनद को प्राप्त करू,
सब दुःख दूर हटे।
सतगुरु से सच्चा ना अब कोई,
मन को मुझे रमे,
भव सागर से पार करे,
ऐसे कृपा करे।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।