सतगुरु शरण जगत की तरनी।
सतगुरु शरण जगत की तरनी।
मोह माया है ज्ञान कतरनी
सतगुरु शरण जगत की तरनी।
लख चौरासी योनि भटकनी
जैसी करनी वैसी भरनी
पाप की गठरी शीश न धरनी
सतगुरु कृपा पार वैतरनी
मोह माया है ज्ञान कतरनी
सतगुरु शरण जगत की तरनी।
मन की गति है सतत् विचरनी
फिर फिर आकर फिर वही करनी
कटुक वचन पर अमृत वरनी
सकल जगत पर पीड़ा हरनी
मोह माया है ज्ञान कतरनी
सतगुरु शरण जगत की तरनी।
सतगुरु की महिमा अनत जानहिं जाननहार,
जो जानेह सो तर गये हुइ भव सागर पार।
अनुराग दीक्षित