* सड़ जी नेता हुए *
बंद पीटारो में ढूँढा जब वर्षों की यादों का खज़ाना, हर यादों पर भारी निकली सड़जी का नेता बन जाना।
मजदुर सरीखे श्याम सलोने अद्भूत वेषभूषा धारी, नख से शीख तक साफ़श्वेत आम आदमीकारोबारी।
सिर पर चारों ओर लपेटे पट्टी वाला मफलर उसके ऊपर ताज़ सरीखे पहने आप की टोपी,
जामा आधे बाजू की और पाँव का चप्पल क्या कहना?
बिना फ्रेम का चश्मा उस पर शेवरॉन मूंछें,आम प्रभाव पूरा करती।
न चाल में न ढाल में न बोली में न बानी में दिखती झलक मुख्यमंत्री की,
सड़ जी कह अलंकृत करते नौकर को भी बाहर में।
छोटा घर, छोटी गाड़ी नहीं लेंगे महल-अटारी लूट लिया दिल्ली को कह कर हूँ मैं केवल तेरा कर्मचारी।
टोका जिसने भी हिम्मत कर अंदर वाली शान पर,
फेंक दिया मक्खी की भांति उनको बागी कह कर ।
राज़दार जब जेल पहुंच गये टूटा तिलिस्म सादे मुखड़े का,
बेनकाब हुए चेहरे पर दाग़ नहीं अनगिनत गड्ढ़े दिखे।
जब तक जिया सम्मान से जिया अब परलोक सिधार कर देवी पूछ रही है कण-कण से क्यों नहीं बनी हथकड़ी हमारी? क्या फँस गये सत्ता की लालच में ?अब पछताये रोये दिल्ली, मुक्ति भ्रष्टाचार से नहीं मिली, मथ्थे मढ़ गया कारोबारी।