सड़क दुर्घटना में अभिनेता दीप सिद्धू का निधन कई सवाल, अनुत्तरित !
26 जनवरी को दिल्ली में लाल किला हिंसा के बाद चर्चा में आए पंजाबी एक्टर दीप सिद्धू का निधन!
कई सच!
कई राज!!
कई सवाल!!!
अनुत्तरित रह गए हैं!!!!
दुर्भाग्य से हम ऐसे दौर में जी रहे हैं। जहाँ क्या सच है? क्या झूठ है? क्या अच्छा है? क्या बुरा है? सोशल साइट पर कोई भी घटना पलक झपकते किसी को भी हीरो या ज़ीरो बना सकती है। कुछ ने ‘लालकिला काण्ड’ के बाद दीप का नाम खालिस्तानियों से जोड़ा! तो कुछ ने उसे राष्ट्रवादी बताया था!
मौके पर मिली जानकारी अनुसार, कुंडली मानेसर हाईवे जो कि सिंघु बॉर्डर के पास है, पर घटित हुई एक सड़क दुर्घटना में अभिनेता दीप सिद्धू का निधन हुआ है। दीप खुद कार चला रहे थे। वह अपने साथियों के साथ दिल्ली से पंजाब लौट रहे थे, तभी हादसा हुआ। घटना के वीडियोज फुटेज देखकर ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि हादसा भयानक था। कुछ लोग इसे पूर्वनियोजित षड्यंत्र के रूप में भी देख रहे हैं।
इस तरह की तुच्छ राजनीति दीप ने शायद पब्लिसिटी पाने के लिए की थी क्योंकि फ़िल्मों में तो दीप को कोई विशेष पहचान नहीं मिली मगर किसान आन्दोलन के बीच की गई उलटी-सीधी गतिविधियों के कारण वह लगातार अख़बारों और मिडिया के मध्य से चर्चा में बने हुए थे। सिद्धू पर जालंधर में ही एस.सी./एस.टी. एक्ट के अंतर्गत केस दर्ज हुआ था। मामला यूँ था कि दीप सिद्धू ने कुछ दिन पहले ‘फेसबुक लाइव’ किया था। जिसमें वो अपने कुछ किसान साथियों से बात कर रहे हैं। इसी बीच किसी किसान ने जातिसूचक शब्द कह दिए थे। जिसके बाद थाना नई बारादरी में पुलिस ने दीप और उसके साथ खड़े किसानों पर केस दर्ज कर लिया था।
वैसे उन्होंने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत पंजाबी फ़िल्म रमता जोगी से की थी जिसके निर्माता जाने-माने अभिनेता एवं निर्माता धर्मेन्द्र थे। जो कि भाजपा के संसद रह चुके हैं। फ़िलहाल धर्म जी के सुपुत्र सन्नी दयोल वर्तमान में भाजपा संसद हैं। लालकिला काण्ड के बाद दीप के कुछ फोटो धर्म पाजी और सन्नी पाजी के साथ सोशल साइट पर चले थे जिससे लोगों ने ये अनुमान लगाया कि दीप भाजपा का आदमी है और भाजपा के मन्त्रियों की शय पर उसने ‘निशान साहिब’ लाल किले पर फैहराया था। जबकि कुछ लोगों का मानना था कि इस काम को अन्जाम देने के लिए दीप को ख़लिस्तानियों से कोई मोटी रक़म मिली है। ख़ैर जो भी हो अब ये मामला पुलिस फ़ाइलों में दबकर रह जायेगा क्योंकि दीप तो जा चुका है।
पिछले बरस गणतंत्र दिवस (26 जनवरी 2021 ई.) पर किसान समर्थित ट्रैक्टर रैली के दौरान हुए उपद्रव के लिए स्वयं किसान नेताओं ने दीप सिद्धू को ही जिम्मेदार ठहराया था। कई संगठनों के किसान नेताओं ने सीधे-सीधे आरोप लगाया कि दीप ही सारे उपद्रव और फसाद की जड़ है। दीप के उकसाने पर ही किसान लाल किले की तारीफ रवाना हुए। यह कोई पहले से तय कार्यक्रम नहीं था। दूसरी तरफ़ उस वक़्त सिद्धू ने अपने एक फेसबुक लाइव पोस्ट पर खुद को बेकसूर बताया था। उसने कहा था कि ‘उसने कुछ किसान सहयोगियों और पुलिस की मदद से लाल किले की प्राचीर पर ‘निशान साहिब’ के झंडे को ज़रूर फहराया था, मगर तिरंगे झण्डे को वहाँ से नहीं हटाया था।’
इस दौर को आप यूँ समझिये कि कोई कुछ करे या न करे! मीडिया में आने के बाद किसी का भी चर्चित होना या बदनाम होना तय है। जैसे जेएनयू से उभरे कन्हैया कुमार और उमर ख़ालिद रातों-रात स्टार बन गए। कई ऐसे भी विधायक और सांसद हैं जिन्हें आज तक कोई नहीं जानता! ये भी सच है कि कुछ सचों पर पर्दा पड़ा रहे! इसलिए किसी की गाड़ी पलट जाती है तो किसी की गाड़ी टकरा जाती है। असमय काल का ग्रास बनने वाले किसी व्यक्ति पर यदि कोई केस चल रहा है तो उसकी मौत पर सवाल उठते ही हैं।
तुलसी बाबा भी कह गए हैं कि ‘समरथ को नहीं दोस गुसाईं’
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