सड़क किनारे
सिसकता सुबकता
वो सारी रात रहा
दो रोटी की जुगाड़ मे
भटकता वो सारा दिन रहा ।
गरीब कमजोर होने की सजा
वो बर्दाश्त करता रहा
आंखों मे आंसुओं को छुपा
कई बार वो हंसता रहा ।
अपने दायरे मे रह
मजबूर वो जीता रहा
दिल की हर इच्छा को
वो तोड़ता मरोड़ता रहा ।
दोड़ती हुई जिन्दगी मे
एक इंसान वो तलाशता रहा
सड़क किनारे सोने को
रात होने का इंतजार वो करता रहा ।।
राज विग