सजे थाल में सौ-सौ दीपक, जगमग-जगमग करते (मुक्तक)
सजे थाल में सौ-सौ दीपक, जगमग-जगमग करते (मुक्तक)
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सजे थाल में सौ-सौ दीपक, जगमग-जगमग करते
उजियारा कर रहे हृदय में, हर्ष अपरिमित भरते
इन दीपों का प्रखर उजाला, फैले सारे जग में
हर ऑंगन हर घर हो जाए, रोशन बढ़ते-बढ़ते
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रचयिता : रवि प्रकाश बाजार सर्राफा, रामपुर