सजा सजा सा समाज(घनाक्षरी )
सजा सजा सा समाज आया आया ऋतुराज ।
धरा महकी है आज, हमें भी महकाया है।।
है मनवा बहकता,महकता पवन जो।
सुरभीत सुगंध को, संग संग ही लाया है।।
बाग उपवन है फूले,मोड़ आम पे है झूले।
भंवरे झूमे झूमे खूले,सारे रस पी आया है।।
खगकुल कूलबुल, नाच रही बुलबुल।
महके है सारे गुल, बसंत ही समाया है।।
राजेश व्यास अनुनय