सजाया ख्वाब काजल सा वो आन्सू बन निकलता है
सजाया ख्वाब काजल सा वो आन्सू बन निकलता है
उजड जाये अगर गुलशन हमेशा दिल सिसकता है
जमाने भर की बातें हैं कई शिकवे गिले दिल के
सुनाउं क्या उसे जो फासला रखकर गुजरता है
न आयेगा कभी वो लौट कर भगवान के घर से
इसी को सोच कर दिल मे वो छाले सा उभरता है।
जहालत छिप नही सकती वो ढींगें मार ले कितनी
घडा आधा भरा हो खूब ऊपर को उछलता है
जलाकत से जहानत नही है लेना देना कुछ
जो जीवन मे कभी तपता नही वो कब निखरता है
जलाये आशियां अपना जो खुद अपनेही हाथों से
नदामत मे दुखी ताउम्र् वो दर दर भटकता है
न करना अब गिले शिकवे न करना बात गैरों की
मुहब्बत के लिये भी वक्त् यूं कब रोज मिलता है
निभाता कौन उल्फत है यहां ताउम्र सोचो तो
जिसे भी दोस्त समझो वही दुश्मन निकलता है
खुशी तक्सीम करता है गमों को जोड देता है
वो जीवन के गनित मे जब भी निर्मल से बहसता है