सजाता कौन
** गीतिका **
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होली का शुभ पर्व न आता, मुख पर रंग सजाता कौन।
मधुर स्नेह के भाव हृदय में, खुलकर यहां जगाता कौन।
कभी कभी ऐसा लगता है, सब कुछ ठहर गया चुपचाप।
स्नेह भरा व्यवहार न मिलता, मन में स्नेह जगाता कौन।
सूर्य यदि नभ पर नहीं आता, रिमझिम वर्षा के पश्चात।
इन्द्रधनुष का रंग लिए फिर, सुंदर दृश्य बनाता कौन।
बादल की महिमा है अनुपम, फैली हरियाली हर ओर।
प्यास बुझाता नित्य अहर्निश, धरती को सरसाता कौन।
मेघ नहीं पानी बरसाते, दूर दूर तक चारों ओर।
इस धरती पर मखमल जैसी, सुन्दर दूब बिछाता कौन।
दोनों ओर हृदय में अविरल, जलता नहीं प्रीति का दीप।
बिन विलंब तब प्रिया मिलन का, वादा किया निभाता कौन।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हि.प्र.)