#’सजल’ एक जीवन परिचय
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#विषय ‘सजल’ एक जीवन परिचय
#दिनांक १५/०९/२०२४
#विद्या लेख
कविवर-डाॅ० रामकरण साहू “सजल” जी का जीवन परिचय उन्हीं की जुबानी
राधे राधे भाई बहनों
हर साप्ताहिक प्रोग्राम में हम किसी न किसी कवि लेखक व साहित्य इतिहासकार के जीवन चरित्र पर चिंतन व चर्चा करते हैं, उनका हमारी भारतीय सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने में क्या योगदान है इस पर भी विचार विमर्श करते हैं, अधिकतर हम ऐसे महापुरुषों के विषय पर चर्चा करते हैं जिन्होंने भारतीय संस्कृति में अपना योगदान देकर बिना प्रसिद्धि के ही गुमनाम हो गए !
इसी कड़ी में आज हम ऐसे कवि व लेखक के विषय में चर्चा करने वाले हैं जिनको प्रसिद्धि की कोई लालसा नहीं है, जिनका नाम है डाॅ० रामकरण साहू “सजल”जी जो कि पेशे से एक शिक्षक है !
“जीवन परिचय”
आपका जन्म १० अगस्त सन् १९७० को बबेरू जनपद, बाँदा (उत्तर प्रदेश) में हुआ, आपकी माता का नाम रामरती साहू व पिता का नाम स्व• श्री श्रीकृष्ण साहू है, श्रीकृष्णा साहू जी के पाँच बच्चे बच्ची है जिनमें से कवि रामकरण जी तीसरे नंबर की संतान है !
श्रीकृष्ण साहू जी एक गरीब किसान थे जिनकी आजीविका मुख्यतः खेती पर ही निर्भर थी, लेकिन फिर भी उन्होंने शिक्षा के महत्व को समझते हुए अपने बच्चों को पढ़ाया लिखाया, आदरणीय कवि डॉ० रामकरण साहू “सजल’ जी अपने सहपाठियों में बचपन से ही प्रतिभावान व होनहार छात्र के रूप में विख्यात रहे, कॉलेज के दिनों से ही इनको लेखन कला से प्रेम हो गया, जिनके चलते इनको घरवालों से भी तानें सुनने पड़ते थे, किन्तु लिखने की ताकत क्या होती है यह बेचारे एक किसान परिवार को क्या पता ? लेकिन आपने क़लम की ताकत को पहचान लिया था, समाज व राष्ट्र को जागृत करने में क़लम ही सब से बेहतर हथियार है !
“शैक्षणिक परिचय”
आपने परास्नातक हिन्दी में बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झाँसी से पूरी करने के बाद
संस्कृत में P.G डाॅ० सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से सम्पूर्ण किया, उसके बाद आपने उर्दू में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अलीगढ़ से P.G किया, तत्पश्चात आपने बी एड – बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झाँसी से पूरा करने के बाद, आपने बी टी सी – परीक्षा नियामक प्राधिकारी इलाहाबाद (प्रयागराज) से पूरा किया, अन्त में आपने एल एल बी की डिग्री बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झाँसी से प्राप्त की !
शिक्षा के क्षेत्र में सेवा देने का पहला अवसर (पहली नियुक्ति) ०१ जुलाई २००६ को प्राप्त हुआ बेसिक शिक्षा परिषद (उत्तर प्रदेश) !
“कवि परिचय”
शिक्षा अर्जन के समय पाठ्यपुस्तकों के साथ-साथ आपने अनेक दार्शनिक साहित्यकार की किताबों का भी काफी अध्ययन किया, साथ ही आपको कवि सम्मेलनों में भी जाने का शौक था, इसी वजह से आपकी मित्र सूची में कविवर गीतकार व उर्दू के शायर ही थे, आप के आदर्श कवि “बाबू केदारनाथ अग्रवाल जी” थे जो की किसी परिचय के मोहताज नहीं, और इनके अग्रज कवि “लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता” पूर्व प्रवक्ता हिन्दी ज्वाला प्रसाद शर्मा इण्टर कालेज बबेरू जनपद – बाँदा, उ०प्र०
जिनकी यह बहुत इज्जत करते थे, और इनको देख कर ही आपकी लिखने की जर्नी स्टार्ट हुई !
पहली ‘रचना’ आपने सन् १९८६ मैं लिखी थी एक सांस्कृतिक कार्यक्रम को देखकर बाल मन के अन्दर हृदय सिन्धु से स्फ्रुटित शब्दों के उद्गार को रचना की माला में मोतियों की तरह पिरोया, उसके बाद तो जैसे आपने हिन्दी भाषा को आगे बढ़ाने का बीड़ा ही उठा लिया, आपने अनेकों कविताएं गीत और ग़ज़लें लिखी हैं, लेकिन कुछ चुनिंदा कविताएँ व ग़ज़लों का जिक्र हम यहाँ करते हैं, जिससे हम उनके मन के भावों को और समाज व राष्ट्र के प्रति उनके प्रेम को हम जान सकते हैं !
हिन्दी है —माँ भारत की बिन्दिया ——
दिनकर के सिर में चढ़ बोली ,
चढ़ी कबीरा कनिया ,
हिन्दी है—माँ भारत की बिन्दिया ——–
बिहँस बही रसखान हृदय से , जिह्वा जयशंकर बोली ,
रोम-रोम तुलसी के फूटी , सूरा के दृग ख़ुद खोली ,
बहन सुभद्रा के सँग सोई ,
बनी आँख की निदिया ,
हिन्दी है — माँ भारत की बिन्दिया ——–
जल-थल अम्बर सरस रही है , बन फुहार घन से बरसे ,
संस्कार पल्लवित कर रही , पवन साथ में हँस सरसे ,
पुरुषों की पगड़ी बन झूमे ,
महिलाओं की अंगिया ,
हिन्दी है — माँ भारत की बिन्दिया ———
सैनिक के सिर हिन्दी डोले , राणा की बनकर पुतली ,
खादी में ख़ुद मिलकर हँसती , पूनी नाचे बन तकुली ,
व्यापारी हँस तोल दिया है ,
साथ रही बन बनिया ,
हिन्दी है — माँ भारत की बिन्दिया ———
सोच”सजल”हिन्दी बन जाऊँ , हिन्दी हो अपना गहना ,
हिन्दी के सँग खाना सोना , हिन्दी के सँग ही रहना ,
जो हिन्दी को धारण करले ,
वह अपनी हो धनिया ,
हिन्दी है — माँ भारत की बिन्दिया —
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ग़मजदा ज़िन्दगी में भटकता रहा ,
आशियाना हमें अब बनाना नही ।
ज़ख़्म अरु दर्द जितने मिले हैं हमें ,
है कसम आपकी कुछ बताना नही ।।
ज़िन्दगी में अंधेरा रहा इस कदर ,
रौशनी चीज़ क्या जानते ही नही ।
हम गिरें या बचें वक्त पर छोड़ दो ,
नेह का दीप हमको जलाना नही ।।
आज़ भी याद मुस्कान है आप की ,
दूर हो आप पर क्यों जलाती हमें ।
नेक नज़रें करम पास अपने रखो ,
आपसे आँख हमको मिलाना नही ।।
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और कितना हम सहें इस दर्द को ,
देख लो हद पार करने फिर लगा है ।
विहँस वह तूफ़ान बनकर आ रहा ,
बदन छूकर प्यार करने फिर लगा है ।।
राह अपनी मोड़कर हम चल रहे ,
किन्तु यह पीछे पड़ा है समझ लेना ।
ज़िन्दगी कर दी नरम फिर मुस्कुरा ,
आज़ वह इकरार करने फिर लगा है ।।
रूह भी अपनी नही अब मानती ,
साथ चलने के लिए कहने लगी यह ।
आइना सा तोड़ दे फिर ना कभी ,
सोच मन इन्कार करने फिर लगा है ।।
टूट जाना बिखर जाना नियति थी ,
आग में खुद को जलाना ठीक कैसे ।
मैं कली हूँ खिलखिलाना कर्म यह ,
ख़्वाब वह साकार करने फिर लगा है ।।
उस दिशा से एक झोंका आ गया ,
संभल पाती मैं मगर देरी लगी कुछ ।
कान में हँसकर वही कहने लगा ,
आप पर इतबार करने फिर लगा है ।।
धूप अथवा छाँव कुछ मतलब नही ,
मुस्कुराना झूम जाना फितरतों पर ।
भ्रमर बनकर आ गया रस चूसने ,
स्वयं को बलिहार करने फिर लगा है ।।
रोक पाती स्वय को मैं क्या करूँ ,
उस अदा ने आज़ पागल कर दिया है ।
हो गए कुछ देर में मिलकर”सजल”
बस वही तकरार करने फिर लगा है ।।
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डॉ० “सजल” की रचनाओं को देखने से ही स्पष्ट हो जाता है कि आपके लगभग अड़तीस वर्ष के एक लम्बे साहित्यिक सफ़र की स्पष्ट झलक दिख जाती है। रचनाओं में व्याकरणीय व्यापकता एवं व्याकरण के नियमों का अनुपालन बराबर देखने को मिलता है। जहाँ तक आपकी ग़ज़लों को देखने में बहर/ मापनी का शुद्ध/सही ढंग से प्रयोग किया जाना उनकी वैधानिकता पर अपनी मोहर लगाता है। आपकी रचनाओं में आपके शैक्षिक योग्यता की खूबसूरत महक यह बताती है कि रचनाओं में कितनी पारिदर्शिता है। आपकी रचना धर्मिता गीत, ग़ज़ल, कविताओं से लेकर खण्ड काव्य एवं महाकाव्य तक जाती है जो एक साहित्यकार का गौरव होता है डॉ० रामकरण साहू “सजल” जिसका जीता जागता उदाहरण ही नही अपितु पर्याय बना हुआ है।
आपके कुछ प्रमुख रचना संग्रह इस प्रकार हैं,
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मुक्तावली – मुक्त संग्रह, गाँव का सोंधापन – ग्रामीण क्षेत्रीय कविताएं, लेखनी पँचकाव्य – लम्बी कविता संग्रह, पुरुषार्थ ही पुरुषार्थ – विहंगम काव्य संग्रह (खण्ड काव्य), हँसते हुए ख़्याल – ग़ज़ल संग्रह, चाँद दाग़ी हो गया – कविता संग्रह,
‘सजल’ की ग़ज़लें – ग़ज़ल संग्रह, शबनम की बूँदें – कविता संग्रह, सन्त गाडगे जी महाराज – महाकाव्य
सजल की ग़ज़ल गोई – ग़ज़ल संग्रह, सजल रश्मियाँ – गीत संग्रह
उपरोक्त आपकी एकल पुस्तकें हैं !
इनके अलावा लगभग बीस से ज्यादा साझा संकलन हैं !
“उपलब्धियाँ”
वैसे तो ऐसी महान विभूतियाँ किसी सम्मान की मोहताज नहीं होती, फिर भी इनको दीर्घकालीन हिन्दी सेवा के लिए जीवन का सबसे बड़ा साहित्यिक सम्मान हिन्दी संस्थान उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष २०२० में सरोकार प्रकाशन भोपाल से प्रकाशित आपकी पुस्तक “चाँद दाग़ी हो गया” के लिए विजयदेवनारायण “साही” पुरस्कार के साथ चालीस हजार की नकद राशि एवं अंग वस्त्र प्रशस्ति पत्र से सुशोभित किया गया,
इसके अलावा आपको शैक्षणिक सेवा काल वर्ष २०११ में जनगणना पर उत्कृष्ट कार्य हेतु भारत के महामहिम राष्ट्रपति महोदय द्वारा सिल्वर मेडल एवं प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया !
इसके उपरान्त आपको देश व देश के बाहर साहित्यिक संस्थाओं द्वारा लगभग एक हजार से अधिक प्रशस्ति पत्र प्राप्त करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है, इसके अलावा भी आप भारतीय संस्कृति व हिन्दी भाषा के महत्व को देश के बाहर भी सम्मान दिलाने के लिए प्रयासरत है, इसी के चलते आपकी पूरे उत्तर प्रदेश मैं राष्ट्र प्रेमी लेखक व समाजसेवी राष्ट्रभक्त की छवि बनी हुई है !
“पारिवारिक परिचय”
शिक्षा के महत्व को समझते हुए आपने अपने बच्चों को अच्छी तालीम दिलवाईं,
आपकी पत्नी का नाम कुसमा देवी साहू, जिनसे आपकी चार संतानें है,
आपकी पुत्री का नाम अंजना देवी जिनका विवाह कर दिया, आपके पहले पुत्र का नाम अरिमर्दन सिंह घायल जिन्होंने इंजीनियरिंग डिग्री प्राप्त कर ली है, दूसरे पुत्र का नाम अरिविजय सिंह धमाका इन्होंने भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर ली है, आपके तीसरे पुत्र का नाम अजय सिंह पवन इण्टर फाइनल में बायो कर रहा हैं !
आपके जीवन में तब भूचाल आया जब अचानक
आपकी पत्नी का देहांत सन् २०१९ में एक कार दुर्घटना में हुआ, होनी को कौन टाल सकता है,
तब से आपने समाज व राष्ट्र प्रेम को अपना जीवन लक्ष्य बना लिया !
आज के लिए इतना ही अगले सप्ताह फिर किसी हिंदी भाषा को समर्पित जुझारू कवि व लेखक के जीवन चरित्र पर चर्चा करेंगे !
स्वरचित मौलिक रचना
राधेश्याम खटीक
भीलवाड़ा राजस्थान