सजनी से खुलकर बात हुई
सजनी से खुलकर बात हुई
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सजनी से खुलकर बात हुई,
जैसे फूलों की बरसात हुई।
यह बात नहीं थी ख्यालों में,
बिन मांगे पूरी सौगात हुई।
प्रथम प्यार कोई चाहे तेरा,
अंतिम प्रेम की अरदास हुई।
शर्तो से जड़ी हुई बंदिशों में,
दिन में ही काली रात हुई।
खुली आँखों से देखे सपनें,
पूरी करने की शुरुआत हुई।
बड़े महँगे दर्शन साजन के,
धरती पर ही कायनात हुई।
तितली बन बैठी फूलों पर,
प्यार की सुहानी वात हुई।
चुप रह सुनता रहूँ उनकी,
मधुर-मधुर वार्तालाप हुई।
मनसीरत मन मेरा भंवरा,
बिना मिले मुलाकात हुई।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)