सजनी तेरी बात चली तो धूप चांदनी बन मुसकाई।
सजनी तेरी बात चली तो धूप चांदनी बन मुस्काईं।
सूखी रुत में कारी बदरी आई व मुझपर लहराई।
परिवर्तित हो गया सभी कुछ , धूप के टुकड़े चंदन बनकर,
लिपट गए सब तन से आकर , महक भरे शुभ उबटन बनकर,
दिव्य हो गया तन मन मेरा , चहुं दिश इक आभा फैलाई।
सजनी तेरी बात चली तो धूप चांदनी बन मुस्काईं।
सूखी रुत में कारी बदरी आई व मुझपर लहराई।
एक एक बूंदों में जैसे अनगिन ही उपहार छुपे थे,
इंद्र देव के अभिसारों के सारे ही शृंगार छिपे थे,
मदरस से भीगी आई थी , पछुवा हो या हो पुरवाई।
सजनी तेरी बात चली तो धूप चांदनी बन मुस्काईं।
सूखी रुत में कारी बदरी आई व मुझपर लहराई।
शीत ग्रीष्म कितना भी बिगड़े , अब उनकी परवाह न करता,
बादल तड़पे गरजे बरसे अब मैं उस पर कान न धरता,
देवर का सौभाग्य मिल गया , अब हर रुत मेरी भौजाई।
सजनी तेरी बात चली तो धूप चांदनी बन मुस्काईं।
सूखी रुत में कारी बदरी आई व मुझपर लहराई।
Kumar Kalhans