सजदा
तेरे सजदे में सर झुका तो सुकूँ आया
तेरी चौखट पे मैंने अपना जहाँ पाया
तू ही मालिक इस सारी कायनात का
तुझसे हटकर न मैने कोई वजूद पाया।।
नूरानी है तेरा चेहरा ही मेरा आलम सारा
जन्नत का नजारा कदमों में तेरे मैंने पाया।।
तेरी मैहर की नज़र ही मकसद ज़िंदगी का
तेरे पहलू में अपना मुकद्दस मुकद्दर पाया।।
तेरा इल्म ही दौलत है दोनों जहाँ की
तू खुदा तेरी रहमत का शुक्राना खुदाया।।
तू ही रहबर रहनुमा मुरशिद मेरे आला
तेरी इवादत ही प्यार का बन गया नुमाया।।
फिदा हो सके मेरी जानो ज़िन्द तुझपे
ख्वाब इतना ही मेरे मौला मैंने पाया।।