‘सजगता’
(१)
प्रखर सोच मन धार,
विवेक वर विधि दान लो।
हो तब पूरण काम,
सदा मनुज मन मान लो।।
(2)
रख दृष्टि चहुँ ओर,
सत्य सतत साधन करो।
जाग हृदय, तज त्रास,
धरा लोक पावन करो।।
(3)
सुधि हो सुघड़ सुजान,
शीघ्र विकट विपदा टरे।
सतर्क तर्क-वितर्क धार,
अकाल मृत्यु फिर नहि मरे।।
(४)
चेतना-वसन धार ,
कुटिल कुमति तब जल उठे।
मन-मधुर श्वास तान,
रस – राग सरस पग उठे।।
(५)
धाम सुसज्जित ललाम ,
नाम राम रटते रहो।
दरस दें करें दया,
सन्मार्ग पर डटके रहो।।
(६)
झर-झर झरे प्रपात,
धार धवल गात उतरे।
मुदित मन हर्षित हुआ,
मुख मधुर मुस्कान बिखरे।।
(७)
लख नखत झलक नैन,
झलकन में झिलमिल लगें।
धवल वर्ण रजे रात
सुप्त भाव सहज से जगें।।
(८)
झुके नैन, मुख न बैन,
प्रिया पी प्रणय को चली।
क्षण घटा घिरी घोर,
अब जाए कौन सी गली।।
(९)
खग विहग गए जाग,
प्रसर प्रकाश तन गया।
खग कुल करते गान,
घना तिमिर तम छन गया।।
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स्वरचित
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