सच
सच ,
जिसका अर्थ हर किसी के लिए अलग होता है,
किसी के लिए सच काला होता है
किसी-किसी का सच काला होता है
और किसी के लिए नीम सा कड़वा।
किसी को बड़ा भारी सा लगता है सच
वही कोई बड़े आसानी से कह जाता है सच।
झूठ के बादल सच को छुपा तो सकते है
मगर हमेशा के लिए नहीं
लालच की रेत तले सच दबाया तो जा सकता है
लेकिन हमेशा के लिए नहीं।
झूठ सौ रंगों का हो सकता है
कुछ वक़्त के लिए चमकीला
और खूबसूरत भी लग सकता है
लेकिन सच पूछो तो यह सब
पीतल पर सोने का पानी चढ़ाने जैसी बात होती है
लुभावने झूठ में अक्खड़ सच वाली कहाँ बात होती है।
सच, जैसा भी हो सच होता है
सच, जैसा भी हो सच होता है।
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’