सच है कि तेरे शहर में मकान बहुत हैं
सच है कि तेरे शहर में मकान बहुत हैं,
बुनियाद इनकी है नई नादान बहुत हैं।
अब मुझे तन्हाइयों से न कोई शिकवा
आने वाले घर मेरे मेहमान बहुत हैं।
ख्वाब में भी मेरे अब तुम आ नहीं सकते
मेरे पलकों पर खड़े दरवान बहुत हैं।
संदीप “सत्यार्थी”