सच में ताला
सारे जग में मचा है हल्ला
गांव नगर के बंद मोहल्ला
पंडित पूजे न मनाएं मुल्ला
घूमें नहीं कोई खुल्लमखुल्ला
पेट की फिकर पहाड़ बड़ी ,
संकट की घड़ी माथे खड़ी ।
मसि्जद सूनी शिवालय खाली
करते दासो की रखवाली
दीप जलाएं बाजाऐ थाली
नहीं भागी बीमारी साली
कल से दादी बीमार पड़ी,
संकट की घड़ी माथे पड़ी।
संचार के सब सजे हिंडोले
जन मन को झुलाए झूले
सच में ताला झूठ रसीले
गली -गली बरसाऐ गोले
करेला की बेल नीम चढ़ी,
संकट की घड़ी माथे पड़ी।
ये दरबारी ज्ञानी बोले
रोग जायेगा हौले-हौले
चाक चौबंद व्यवस्था में पोलें
एक नज़र में कम है तोलै
सावन में झोपड़ी टूटी रही
संकट में घड़ी माथे पड़ी ,
स्वरचित – शेख़ जाफर खान