सच गूंगा नहीं
हवस नहीं है मुझे दौलत कमाने की
इक जरूरत है ये घर को चलाने की
मैं जीता, तो उसने भी मुबारक कहा
लगा था कोशिश में जो मुझे हराने की
चाहता था वह भी मुझको मेरी तरह
हिम्मत नहीं थी बस इतना बताने की
बस एक भड़कता बयान ही काफी है
ज़रूरत नहीं तुमको आग लगाने की
वह गूंगा नहीं था, जो खामोश रहता
कोशिशें लाख हुईं सच को दबाने की
हक लिखेंगे हम, हक ही बोलेंगे हम!
अपनी आदत नहीं कसीदे सुनाने की
उठा ना पाया वह ज़माने को सर पे
उसकी तो आदत है ऊधम मचाने की
होता है यूं कमजोरियों में इज़ाफ़ा
छोड़िए आदत ये आंसू बहाने की