सच की हालत
आज सच पराजित होने की कगार पर खड़ा है।
पर सच है कि झूठ को हराने की जिद्द पर अड़ा है।
झूठ की चालों का तोड़ नहीं है आज सच के पास,
यूँ ही झूठ के तीरों से घायल हुआ आज सच पड़ा है।
घोर कलयुग का ये असर है जो सच कमजोर हो गया है,
बस छलकने की देर है वरना झूठ का भरा हुआ घड़ा है।
देर हो सकती है पर अंधेर हो जाये ये मुमकिन नहीं,
इतिहास में झाँक कर देख लो झूठ से सच होता बड़ा है।
सच केवल अपने सहारे अपने हक की लड़ाई लड़ता है,
पर झूठ हमेशा छल, कपट, बेईमानी के सहारे लड़ा है।
ज़माने वाले कहते हैं कि सच की कभी हार नहीं होती,
धैर्य आजमाने को थोड़ी देर के लिए झूठ से पिछड़ा है।
झूठ की आँखों में सच हमेशा ऐसे खटकता रहता है,
जैसे चोरों की नजरों में खटकता हार मोतियों जड़ा है।
“सुलक्षणा” डरे बिना सच का दामन थामे रहना ताउम्र,
आज आज का नहीं झूठ सच का सदियों का झगड़ा है।