सच का पर्दाफाश ( शोषण आधारित )
सच का पर्दाफ़ाश (शोषण से सम्बन्धित)
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सच के दामन में मुँह छुपाये बैठे हैं,
अजब निराले कौतुक करके बैठे हैं ।
पाक़ साफ़ बनते हैं,
सरेआम शोषण करते हैं ।
जनता के बीच सिर उठा चलते हैं,
अपने को बड़ा कहते हैं ।
बड़े मिलों के मालिक फले-फूले हैं
मजदूरों के शोषण पर महल बनाये हुऐ हैं ।
इनकी हड्डियों पर सुबह से शाम फलते है,
धूप ताप में सड़ते रहते है ।
इनके सुरों को कौन सुनेगा ?
धनी तो और धनी ,
निर्धन और निर्धन बनेगा,
पूँजीवाद फिर से फलेगा
लाला तो और लाला बनेगा साम्यवाद,समता,समाजवाद शब्द
थोथे प्रतीत होते हैं ।
इनकी आड़ में मिलों के मालिक
समृद्ध होते हैं ,
महँगाई की मार बेबस मजदूरों
पर ही ज्यादा है
रूखी-सूखी का ही सुकून है ।
कितना अच्छा हो
झूठ बेनकाब हो जाऐ ,
सबको मेहनत का पर्याप्त मिले
कोई भी गरीबी में फाँसी के फन्दे को न खेले
न हो बोझ कन्याऐं
ऐसा हो सकता है ,
इन्कलाब आ सकता है ।
सभी को रोज़ी-रोटी मिलनी चाहिऐ ।
मालिकों को हैवान नहीं होना चाहिऐ ,
लड़कों की बोली लगना बन्द होना चाहिए ।लड़कियों को ही आगे आना चाहिए,
हास्यास्पद लगती है ,
किताबों की सी बातें लगती है ।
परिवर्तन होना मुश्क़िल है
अगर सत्ताधारी बटोरते रहे
अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिऐ
फिर कैसे सोचा जाऐ
कि होगी गरीबी दूर
निज़ात मिलेंगी मजदूरों को शोषण से .
…..डॉ मधु त्रिवेदी