” सच का दिया “
चाहे लाख तूफ़ान आये मगर सच का दिया बुझ नहीं सकता,
जिंदगी अगर बख्शी है “मालिक” ने तो वो मिट नहीं सकता I
“मालिक” तुम हमसे नज़रें न मोड़ना वर्ना हम मर जायेंगे,
तुम्हें अपना कहकर हम अभी-अभी मिट्टी में मिल जायेंगे,
लेकिन अपनी माँग में केवल तेरा ही सिन्दूर हम लगायेंगे,
जियेंगे सुहागिन और मरने पर भी सुहागिन कहलायेंगे I
चाहे लाख तूफ़ान आये मगर सच का दिया बुझ नहीं सकता,
जिंदगी अगर बख्शी है “मालिक” ने तो वो मिट नहीं सकता I
तेरे नाम की “मेहंदी” अपने इन हाथों में रचाई हमने,
तेरे नाम की चमकती बिंदिया माथों में सजाई हमने,
तेरे नाम की माला की अलख चहुँओर जगाई हमने,
तेरे चेहरे की खातिर रात की निन्दियाँ गँवाई हमने,
चाहे लाख तूफ़ान आये मगर सच का दिया बुझ नहीं सकता,
जिंदगी अगर बख्शी है “मालिक” ने तो वो मिट नहीं सकता I
प्यार का समंदर भी वो तेरे प्यार के सामने झुक जाए,
मेरे साजन का “खूबसूरत चेहरा” अगर सामने आये ,
आँखे देखें उसे तो मेरा मनमयूरा झूम-झूम कर गाए,
छड़भंगुर जीवन तेरी तिरछी नज़रों से भी न घबराए,
चाहे लाख तूफ़ान आये मगर सच का दिया बुझ नहीं सकता,
जिंदगी अगर बख्शी है “मालिक” ने तो वो मिट नहीं सकता I
देशराज “राज”