सच का जग में दाम बहुत है
—-ग़ज़ल——-
किसने कहा आराम बहुत है
जीवन में तो काम बहुत है
पग पग पर है नव कठिनाई
आगे भी संग्राम बहुत है
नाम अनेकों हैं प्रभु के पर
तरने को गुरु नाम बहुत है
पीता है जो नाम का प्याला
उसके लिए यह जाम बहुत है
स्वर्ग करे क्या जिसके लिए बस
माँ के चरण का धाम बहुत है
वेद पुराणों में है लिक्खा
सच का जग में दाम बहुत है
भूल अभी मत रब को “प्रीतम”
तन छूटे विश्राम बहुत है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती 【उ०प्र०】