“सच का आईना”
सच का आईना है तू,
निर्मल जल से निर्मल है तू.
ना जाने कितनेही राज खोले है तूमने,
क्योकि सच का प्रतिक है तू…
कितनेही मुखवटे लगाये इंसान,
सारि दुनिया को वो ठग लेगा.
लेकीन तुम्हारे सामने आतेही,
उसे सच का सामना हो जाएगा…
आईना अक्स दिखाता है,
आईना इन्सानीयत दिखाता है.
जो हम मे नही है,
वो आईना बताता है…
कितनेही प्रकार तूम्हारे है,
हर साइज मे तुम समाए हो.
सबके प्यारे हो तुम,
क्योकी सच का प्रतिबिंब हो तुम…
काश तूम्हारे जैसे नेता होते,
आईना ज़ैसे साफ सुधारे होते.
कभी ना करते गडबड घोटाले,
मन के ना होते वो काले…