*सच कहने में सौ-सौ घाटे, नहीं हाथ कुछ आता है (हिंदी गजल)*
सच कहने में सौ-सौ घाटे, नहीं हाथ कुछ आता है (हिंदी गजल)
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1)
सच कहने में सौ-सौ घाटे, नहीं हाथ कुछ आता है
बोल रहा जो झूठ बराबर, कुर्सी झट पा जाता है
2)
जो चलता है सही मार्ग पर, भले गरीबी में रहता
उसके ही अंतर्मन में सुख, परम शांति का छाता है
3)
आडंबर में क्या रक्खा है, इसको भक्ति नहीं कहते
भीतर-बाहर रहा एक जो, परम ब्रह्म को पाता है
4)
जग में नहीं पराया कोई, बैरी कोई मत मानो
सदा-सदा से इसी भाव से, ईश-भक्ति का नाता है
5)
कहॉं भक्त ने चाहा किंचित, दरबारी बनकर रहना
वह ईश्वर के लिए हमेशा, कुटिया में ही गाता है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451