सच और झूठ
सच होता है नीम-करेला,
झूठ कहो मुर्गे की टांँग,
नोंच-नोंच कर खाओ ऐसे,
पाओ जीवन का आनंद,
झूठ में होता स्वाद का तड़का,
नमक-मिर्च औ चटनी-प्याज,
सच होता बीमार का भोजन,
उबली सब्जी, पतली दाल,
तर चाशनी झूठ परोसो,
सजाओ ऊपर से चेरी लाल,
सच बेचारा चना-चबेना,
लगता हरदम खस्ताहाल,
झूठ के आगे भीड़ एकत्रित,
रहता हरदम मालामाल,
सच हमेशा रहे अकेला,
रहता हरदम फटेहाल,
झूठ सदा शृंगार सुसज्जित,
सफेदपोश अफसर लगता है,
सच बेचारा मास्टर साहब,
साइकिल पर अक्सर दिखता है,
पर झूठ से जब पर्दा उठता है,
सबकुछ तब नंगा दिखता है,
सच सदा कंचन काया-सा
नदियों में गंगा लगता है।
मौलिक व स्वरचित
©® श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)