सच और झूठ
हम जो कुछ सुनते हैं और जो कुछ देखते हैं वह हमेशा सच नहीं होता ।क्योंकि आजकल झूठ को भी सच की तरह बनाकर पेश कर दिया जाता है। और तो और झूठ को सच की तरह बनाकर भी दिखा दिया जाता है ।जनसाधारण की मनोवृत्ति इन सब को सच मानकर उस पर अपनी प्रतिक्रिया देना शुरू कर देती है । आत्मचिंतन और विवेक से सोचने की शक्ति जनसाधारण में लुप्त होती जा रही है । और भीड़ की मनोवृत्ति हावी हो रही है । स्वचिंतन की कमी से भ्रम की स्थिति बनी रहती है । और सत्य का पता लगाने में काफी कठिनाई उत्पन्न हो जाती है । इस पर कुछ तत्व अपने अंतर्निहित स्वार्थ पूर्ति के लिए तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश कर देते है । जिससे उहापोह की परिस्थितियाँ बन जाती है। प्रसार माध्यम टीवी, इंटरनेट, और सोशल मीडिया भी इस प्रकार की विषम परिस्थितियाँ उत्पन्न करने के लिए जिम्मेवार हैं। लोगों की नकारात्मक मानसिकता भी कुछ हद तक इसके लिए दोषी है । क्योंकि नकारात्मक मानसिकता में नकारात्मक सोच का प्रभाव अधिक रहता है ।और लोगों का दृष्टिकोण नकारात्मक अधिक हो जाता है । जिसमें सकारात्मक सोच का अभाव रहता है ।
अतः आज के दौर में यह जरूरी है है कि हम किसी भी विषय में अपने विचार प्रस्तुत करने से पहले तथ्यों को अपने विवेक से परखें और स्वचिंतन कर विषय की बारीकियों को समझें और अपना निर्णय लें। लोगों की कही सुनी बातों पर विश्वास कर अपना मत न प्रकट करें । कभी-कभी आपका गलत मत किसी दूसरे को गंभीर परेशानी में डाल सकता है ।
दूसरों के कथन पर अपनी धारणा बना लेने से आपके द्वारा लिये निर्णय गलत सिद्ध हो सकते हैं।