सच्ची मित्रता
??सच्ची मित्रता??
एक बार की बात है दो युवक थे उनका आपस मे परिचय हुआ ।
धीरे उनकी मित्रता और भी घनिष्ठ हो गई।एक दूसरे के घर जाने लगे।एक बार उनमें से एक मित्र के घर शादी हुयी उसने अपने नये मित्र को भी आमन्त्रित किया।नया मित्र भी शादी में उनके घर आया
लेकिन उसकी आवभगत में कमी रह गयी। यह कमी खाने पीने की नहीं थी, बल्कि जिस व्यवहार की वह अपेक्षा कर रहा था वह वहाँ उसके साथ नहीं हुआ। आमंत्रित करने वाला बीमार हो गया था।मेहमान मित्र वहाँ अपने आपको अपमानित महसूस कर रहा था।
उसे वहाँ अच्छा नहीं लगा और वह अपने घर वापस आ गया कुछ दिनों बाद उसने अपने मित्र को व्यंगात्मक लहजे में एकपत्र लिखा- विवाह वाले दिन आपकी तबियत खराबथी,इसलिये शायद आप मेहमानों की ठीक से देखभाल नहीं कर पाये।खैर अब आपकी तबियत कैसी है?कुछ दिनों बाद उसका उत्तर आया।
पत्र में लिखा था-प्रिय मित्र ,विवाह में सैकड़ों रिश्तेदार औऱ मित्र आये थे, पर उनमें से कोई ऐसा नहीं था,जिसने मेरी चिन्ता की हो
। किसी ने मुझसे मेरे स्वास्थ्य के बारे में नही पूछा। मित्र सिर्फ तुम ही पहले व्यक्ति हो जिसने मेरा हाल – चाल पूछा ओर मुझे पत्र लिखा।हमारी दोस्ती भले ही बहुत कम दिनों की है पर आज मैं तुम्हारे जैसा मित्र पाकर धन्य हो गया ।
मैं तुम्हारा बहुत बहुत आभारी हूँ,विवाह वाले दिन मेरा स्वास्थ्य खराब होने के कारण मैं तुम्हारा अपेक्षित आदर सत्कार नहीं कर पाया, जैसे ही पत्र मिले उसी दिन घरआने का कार्यक्रम बनाओ ।
यह पत्र जैसे ही दूसरे मित्र ने पढ़ा उसकी सारी शिकायतें दूर हो गई उसे महसूस हुआ कि वह कितना गलत था और पता नहीं क्या- क्या सोचरहा था ,उसे अपनी गलती का एहसास हो गया।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है
*कई बार हम दूसरों की विवशता को समझे बिना ही व्यर्थ में ही उन पर दोषारोपण करने लगते हे। मित्रता की कसौटी सिर्फ एक दूसरे से अपेक्षाएं रखना नहीं है, बल्कि एक दूसरे कि अपेक्षाओं पर खरा उतरना है। जिस दिन इंसान को ये बात समझ में आती है उसी दीन से सच्ची मित्रता शुरू हो जाती है।