सच्ची मित्रता
नलिनी, हटो वहाँ से,अचानक कमला जोरो से चिल्लाई और नलिनी को दुसरी तरफ ढकेल दिया। जब उसकी आँखे खुली तो उसने अपने आपको अस्पताल के बेड पर परे हुए पाया।वहाँ पर उसके साथ उसके बगल में उसकी माँ बैठी थी तथा नलिनी पास ही खड़ी आँखों में आँसू लिए उसे देख रही थी।
वैसे तो नलिनी और कमला के आर्थिक परिस्थितियों में जमीं आसमाँ का अंतर था ,लेकिन फिर भी कमला की माँ अपनी बेटी को नलिनी के साथ उसी स्कूल में पढ़ने भेजती थी तथा सारी वेतन उसकी पढ़ाई पर खर्च कर दिया करती थी। कमला की माँ निरक्षर थी पर वह अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा दिलाना चाहती थी । मात्र एक ही स्कूल में पढ़ने के कारण वह दोनों दोस्त थी ।कमला की माँ नलिनी के घर ही काम किया करती थीं।
घर में कमला अपना स्कूल का होमवर्क खत्म कर अपने मां के कामों में हाथ बंटाने लगती। शाम के वक्त जब सब अपने कामों में व्यस्त रहते ,तब नलिनी चुपके से अपना सारा होमवर्क कमला से ही करवा लेती थीं।नलिनी कमला की माँ के मालकिन की बेटी थी इसलिए वह नलिनी का सारा होमवर्क कर दिया करती थी | कमला हमेशा अपने स्कूल में टॉप किया करती थी जिनके कारण उसके शिक्षकगण उससे बहुत प्रेम किया करते थे।वही नलिनी का परिणाम औसत ही रहा करता था। वह इस वजह से भी कमला से नफरत किया करती थी। वह उसे परेशान करने में कभी पीछे नहीं रहती थी। नलिनी अपने बिगड़े दोस्तों के साथ खूब तंग किया करती थी,परंतु कमला उनका कोई जवाब नहीं देती थी और नलिनी को अपना सच्चा मित्र मानती थी।
आज नलिनी और उसकी माँ बाजार आई हुई थी।शाम का समय होने ही वाला था और कमला अपने स्कूल से लौटने ही वाली थीं। इधर बाजार में नलिनी विभिन्न प्रकार के वस्तुएँ देखने के चक्कर में अपनी माँ से अलग हो गई थी। तभी कमला अपनी स्कूल से वापस बाजार के रास्ते से ही आ रही थी ।कमला नलिनी के तरफ तेजी से आ रहे कार को देखकर जोर से चिल्लाई तथा पास आकर नलिनी को जोर से दूसरी तरफ़ धक्का दे दी,जिससे नलिनी दूसरी ओर जा गिरी तथा कमला गाड़ी के नीचे आ गई।पर कहते हैं न भलाई कर,भला होगा।कमला के सर में चोट लगने के कारण बहुत खून बह गया लेकिन तुरंत नलिनी कमला को अस्पताल गयी जिससे डॉक्टर उसकी जान बचाने में सफल रहते हैं।
अब नलिनी उसके सामने खड़े होकर बेसब्री से कमल के होश आने का इंतेजार कर रही थी ।उसे अपनी गलती का एहसास हो चुका था ।आखिर, आज उसकी जिदंगी कमला की ही दी हुई थी। अब वे दोनों सबसे अच्छे और गहरे मित्र बनते हैं और हमेशा एक दूसरे के लिये ढाल बनकर खरा रहते हैं।
काल्पनिक, स्वरचित और मौलिक।
नैतिक:- सच्ची दोस्ती में एक दूसरे की परवाह सर्वाधिक मायने रखती है
लेखक-खुशबू खातून