‘सच्ची बात’
‘सच्ची बात’
————–
जमीर बेच, जो बने अमीर;
उसकी भला,क्या तकदीर;
बसती इसमें, मौकापरस्ती;
मिलते ये, हर बस्ती बस्ती।
जितना मिला , उतने में ही;
निज जीवन , जीना सिखो;
गैरों पर , न कुछ भी छोड़ो;
खुद से ही, किस्मत लिखो।
जात जड़, देश बर्बादी का;
बात कर, पूरी आबादी का;
व्यवस्था हो गई है , चौपट;
क्या फायदा, आजादी का।
आरक्षण, दहेज या लूट से;
कभी न तुम, धनवान बनो;
योग्यता और सत्कर्म से ही;
इस देश की,तुम शान बनो।
बुद्धि’ व योग्यता, धरोहर है;
अपने,महान भारत देश की;
इसको दबाना अनर्थ करेगा,
प्रगति में,पूरे विश्व प्रदेश की।
धर्म पे , न कोई भी बात हो,
हर हाथ में, सबका साथ हो;
निजस्वार्थ में, देश मत बेचो;
सैनिकों से भी, कुछ सीखो।
गरीबों का , मसीहा कहाए;
गरीबों को ही , खूब सताए;
मौका मिले , गरीबों को ही;
लूट , ‘मालामाल’ बन जाए।
जिसमें दिखे , कर्म व ईमान;
वही करे , जग में अभिमान;
जो मानव को, कष्ट पहुंचाए;
शैतानों का ही रूप कहलाए।
**********************
स्वरचित सह मौलिक;
……✍️ पंकज कर्ण
…………कटिहार।।