सच्ची पूजा
ताकत और कुर्सी का ऐसा रुतबा देखकर मेरी आँखें शरमा गई,
वतन पर जान न्यौछावर करने वाले शहीदों की याद आ गई I
फूलों की कलियों पर रुतबे की चाबुक घुमाकर क्या मिलेगा ?
मजलूमों की मान-अस्मिता मिट्टी में मिलाकर क्या मिलेगा ?
बाग़ के भूखे-प्यासे पौधों पर तलवार चलाकर क्या मिलेगा ?
गुलशन के नौनिहालों के भविष्य को तबाह कर क्या मिलेगा ?
ताकत और कुर्सी का ऐसा रुतबा देखकर मेरी आँखें शरमा गई,
वतन पर जान न्यौछावर करने वाले शहीदों की याद आ गई I
फूलों को बाँटते -२ प्यारे गुलशन को कहाँ पहुँचा दिया ?
फूल-पत्तियों को एक -२ बूँद पानी का मोहताज बना दिया ,
गरूर के आगोश में वो कहते है ,फूलों को नगीना बना दिया ,
बाग़ के माली ने सच के ऊपर झूठ का मुलम्मा चढ़ा दिया I
ताकत और कुर्सी का ऐसा रुतबा देखकर मेरी आँखें शरमा गई,
वतन पर जान न्यौछावर करने वाले शहीदों की याद आ गई I
“ राज ” क्यों आया जहाँ में ? एक दिन छोड़कर जाना भी पड़ेगा ,
प्यार की किताब का पन्ना पढ़कर मालिक को सुनाना भी पड़ेगा,
झूठ,घ्रणा,नफरत की गठरी को सच के समंदर से छिपाना पड़ेगा,
इंसान-२ से मोहब्बत ही “सच्ची पूजा” मालिक को बतलाना पड़ेगा,
ताकत और कुर्सी का ऐसा रुतबा देखकर मेरी आँखें शरमा गई,
वतन पर जान न्यौछावर करने वाले शहीदों की याद आ गई I
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देशराज “राज”
कानपुर