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22 May 2023 · 1 min read

सच्ची ख़ुशी

खोजता रहा मै दिन प्रतिदिन,
सच्चे सुख की परिभाषा।
जानूंगा मै राज ये एक दिन,
मन में थी अभिलाषा।

जीवन की ये कठिन पहेली,
सब मन में हैं सुलझाते।
खुद की उलझन भरी पड़ी हो,
फिर भी औरों को समझाते।

खुश होकर भी ख़ुशी न लगती,
क्या मेरे जीवन में है कमी।
चेहरे पर मुस्कान है बाकी,
फिर आँखों में क्यों है नमी।

भांति भांति के खेल तमाशे,
महफ़िल में भी जाता हूँ।
लोगों के मै बीच में बैठा,
खुद को अकेला पाता हूँ।

ऐसा क्या मै छोड़ के आया,
जिसको मै ढूँढू हर पल।
हर दिन दिल को समझाता हूँ,
देखो अच्छा होगा कल।

वो कल अब तक कभी न आया,
शायद वो न आएगा।
जो मिलना हो खुद के अंदर,
वो बाहर कंही न पायेगा।

मिले नहीं खुशियों का समंदर,
कुछ बूँद ख़ुशी की काफी हैं।
बूँद बूँद से ही सागर भरता,
और जीवन में क्या बाकी हैं।

भाग दौड़ के चक्कर में,
जो छोड़ मै पीछे जाता था।
उन्ही पलों को देख के आज,
अब मै कुछ मुस्काता था।

राज समझ में आया कुछ कुछ,
छोड़ सभी कुछ बैठ गया।
मृग तृष्णा का पीछा करना,
मैंने तब से छोड़ दिया।

Language: Hindi
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