सच्चा प्यार
सच्चा प्यार
एक कल्पनिक दृश्य प्रस्तुत करते हुये अपनी रचनाओं के माध्यम से सबका ध्यान इस ओर इगिंत करने का प्रयास करता हूँ। बदलते परिवेश ने हमारे विचारो को बौना कर दिया है।।।
हम ठहरे बेचैन शायर एक के अलावा कभी किसी के बारे में सोचा तक नही। एक महफिल मे लगे सच्चे प्यार का बखान करने तालियों की गड़गडाहट सुनकर सातवे असमान पर थे।। अपनी श्रेष्टता साबित करने के चक्कर में एक शेर आजकल के प्यार पर कह गये। साहब भावनाओं में बह गये
“नया जमाना है,
फैशन का दौर है!
एक जानू सैट है,
दूसरी पर गौर है”
यहीं गलती कर गये। एक नवयुवक तिलमिलाया उसने अपना तर्क सुनाया।
“क्यू हगांमा मचा रहे हो
इसमे पब्लिसिटी की क्या बात है
तुम एक के लिये जिये
उसी के लिये मर जाओगे
तो हम क्या करे
ये तो अपनी-अपनी
कैपिसिटी की बात है”
हम खमोश रह गये उसने हमारी क्षमता पर ही सवाल उठा दिया। हमने अपना बस्ता उठाया धीरे से बुदबुदाया।
“नये वक्त ने बना दिया ,
प्रियतमो को जानू ,
वक्त तो बदल रहा है ,
चाहे मै मानू या ना मानू”
हम ये बोल कर चलने लगे तो एक ने टोक दिया शायद मेरी बात को गम्भीरता से ले गया था।।
“बोला शायर जी ये बता जाओ।
सच्चा प्यार कहाँ रहता है।
आजकल कहाँ मिलता है।
मैं हल्का सा मुस्कुराया बोला भाई- “किताबो में बंद है और शायरीयों में मिलता है”
रामकृष्ण शर्मा “बेचैन”