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2 Aug 2018 · 1 min read

सच्चाई

नहीं कोई भी सर्वेसर्वा
सब की हैं सीमायें ।
जब जानें श्रावण भादौ में
बादल नहीं छायें ।

चुकता हो चुकती है किरणें
बादल से लड़-भिड़ कर
आठ माह के बाद मई में
जाकर के गरमायें ।

घेरघार कर शरद सूर्य को
ओढ़ कोहरा सोये
पर दीवाली बाद शीत के
दाँव नहीं चल पायें ।

कोई कितना भी दबंग हो
सब मरते जीते हैं
नहीं कोई भी सर्वेसर्वा
सब की हैं सीमायें ।

Language: Hindi
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