सच्चाई
नहीं कोई भी सर्वेसर्वा
सब की हैं सीमायें ।
जब जानें श्रावण भादौ में
बादल नहीं छायें ।
चुकता हो चुकती है किरणें
बादल से लड़-भिड़ कर
आठ माह के बाद मई में
जाकर के गरमायें ।
घेरघार कर शरद सूर्य को
ओढ़ कोहरा सोये
पर दीवाली बाद शीत के
दाँव नहीं चल पायें ।
कोई कितना भी दबंग हो
सब मरते जीते हैं
नहीं कोई भी सर्वेसर्वा
सब की हैं सीमायें ।