देखा है
सच्चाई ही जीता करती
सबसे झूठी बात यही
मैंने सच्चाई को अक्सर
अश्क बहाते देखा है….
छल प्रपंच पाखंडों को
देखा है मैंने इठलाते
भोली-सी ज़ज्बातों को
प्रायः झुंझलाते देखा है…!
भैंस उसी की जिसकी लाठी
शत-प्रतिशत है बात सही
मज़बूरी-कमज़ोरी को तो
हरदम लुटते देखा है…!
साजिश के इस मकड़ जाल में
मासूमियत फंसा करती
ईमानों-इंसाफ़ों को
मैंने बिक जाते देखा है…!
© अभिषेक पाण्डेय अभि