सचेतन संघर्ष
जमीन से उठकर संघर्ष करता हूँ
बिन पंखों के ऊँची उड़ान भरता हूँ।
परिश्रम के पसीने से
सींचता हूँ इस धरा को
नव यौवन के उमंग से
भर देता हूँ इस जरा को।
पुरुषार्थ करते आगे बढ़ना सीखा है
भाग्य पर भरोसा तो लगता फीका है।
जीना है जीवन
उल्लास या उदास हो
तो फिर क्यों पथ पर
चलना हताश हो ।
प्रार्थना, उपासना बस यही जानता हूँ
संघर्ष की शक्ति दे बस यही मांगता हूँ।
न किसी से प्रतिस्पर्धा
न ही किसी से है
निश्चल, नीरव शांत सा
नित चलना उद्देश्य है।