सखी छन्द द्विगुण/आंसू छन्द
सखी छन्द द्विगुण/आँसू छन्द
28 मात्राएं 14,14 की यति
लिखता कुछ याद पिता की,
तुम सबको आज बताता।
मैं इस दिल की पीड़ा को,
रो-रोकर तुम्हें सुनाता।।
कहता कुछ बात क्षणों की,
जो बचपन है कहलाता।
खुशियाँ थी घर आँगन में,
सब कोई था मुस्काता।।
जीवन का वो क्षण मेरा,
था बहुत बड़ा सुखदायी।
ना कष्ट नही चिंता थी,
खुशियाँ ही खुशियाँ छायी।।
मैं अपने दुख दर्दों का,
किस्सा हूँ आज बताता।
मैं इस दिल की पीड़ा को,
रो-रोकर तुम्हें सुनाता।।
उस समय हमारे घर में,
पापा ही एक सहारा।
आ गया समय कुछ ऐसा,
विपदा ने पैर पसारा।।
ये बदकिस्मत थी मेरी,
जो घोर अँधेरा छाया।
रुक गयी ह्रदय धुन उनकी,
उठ गया पिता का साया।।
मैं सिसक-सिसक कर अपनी
ये करुण कहानी गाता।
मैं इस दिल की पीड़ा को,
रो-रोकर तुम्हें सुनाता।।
हो गया प्रथक मैं घर से,
अंदर अंदर मन रोता।
बाहर विदेश में आकर,
बोझा मैं श्रम का ढोता।।
मेरी खुशियों पर देखो,
तम ने अधिकार किया है।
कोमल सा ह्रदय हमारा,
पर दुख ने घाव दिया है।।
थे खेल-खेलने के दिन,
लेकिन अब फर्ज निभाता।
मैं इस दिल की पीड़ा को,
रो-रोकर तुम्हें सुनाता।।
घुट-घुटकर निर्धनता में,
जीवन को आज बिताता।
सारा दिन कठिन परिश्रम,
कर कर तब भोजन पाता।।
घुट घुट कर मै रहता हूँ,
गाता हूँ नित पीड़ाएं।
होती कोमल मन में नित
मेरे झंकृत करुणाएँ।।
मैं कंटक भरे डगर पर,
पैदल चलता ही जाता।।
मैं इस दिल की पीड़ा को,
रो-रोकर तुम्हें सुनाता।।
अब भी मुझको पापा की,
जब याद कभी है आती।
फिर करुणामय सागर से,
दृग करुण अश्रु भर लाती।।
रहता मैं विकल बहुत ही,
ना चैन कहीं है आता।।
इस तरह सभी पीड़ाएँ,
गीतों में हूँ दर्शाता
मैं अपने अंतर्मन से,
यह करुण कहानी गाता।
मैं इस दिल की पीड़ा को,
रो-रोकर तुम्हें सुनाता।।
अभिनव मिश्र अदम्य