सक्षम को दोषी कहाँ
कुंडलिया छंद…
सक्षम को दोषी कहाँ, कह पाता कानून।
मुक्त हुए सुख भोगते, करके कितने खून।।
करके कितने खून, हानि दुर्बल का होता।
लिए हृदय उम्मीद, न्याय में वह है रोता।।
सुविधाओं का लाभ, उठाते रहते अक्षम।
‘राही’ जग में दोष, नहीं होता जो सक्षम।।617
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)