सकारात्मकता
सकारात्मक सोच का प्रभाव सकारात्मक कार्य करने की प्रेरणा पर पड़ता है। नकारात्मक सोच से सकारात्मक कार्यप्रणाली में व्यवधान उत्पन्न होता है। नकारात्मक एवं सकारात्मक सोच एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । किसी कार्य को प्रारंभ करने में सकारात्मक सोच से पहल करनी चाहिए। सभी सकारात्मक गुणों का विश्लेषण करने पर भी नकारात्मक बिंदुओं पर विचार करना आवश्यक है। जिससे कार्य निष्पादन में आने वाली कठिनाइयों का समय से पहले निराकरण और सामना किया जा सके । वास्तविकता में नकारात्मक सोच से पहल करने पर मस्तिष्क में सकारात्मक सोच का अभाव हो जाता है ।इससे सकारात्मक गुणों की अवहेलना हो जाती है। जिसके फलस्वरूप सफलता की संभावनाएं कम हो जाती है। लगातार नकारात्मक सोच से नकारात्मक व्यवहार का निर्माण होता है।इससे मनुष्य की प्रज्ञा शक्ति प्रभावित होती है। जिससे वह सकारात्मकता में भी नकारात्मक बिंदुओं को खोजने के लिए बाध्य होने लगता है । जिसके फलस्वरूप वह हमेशा सकारात्मकता और नकारात्मकता के द्वंद मे उलझा रहता है। क्योंकि उसके मस्तिष्क में व्याप्त नकारात्मकता उसे सकारात्मक सोच से वंचित करती है। जिससे वह सफलता के स्थान पर असफलता की असंभावित कल्पना से ग्रस्त होने लग जाता है ।
अतः सकारात्मक सोच को ग्रहण करना बहुत ही आवश्यक है । किसी भी कार्य की सफलता के लिए सकारात्मक सोच का प्रारंभिक अवस्था मे होना आवश्यक है। विश्लेषण प्रज्ञा में नकारात्मकता के बिंदुओं पर विचार भी आवश्यक है। जिससे सही निर्णय लिया जा सके और सफलता सुनिश्चित की जा सके।