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5 Jan 2024 · 2 min read

#संस्मरण

#सत्य_कथा
■ इक नाता विश्वास का
★ एक सबक़ इंसानों समाज के लिए
【प्रणय प्रभात】
बात 5 साल पहले की है। जब हम दो साल के लिए अस्थाई रूप से ग्वालियर प्रवास पर थे। हरिशंकर-पुरम स्थित चिनाब अपार्टमेंट में फ्लैट की गैलरी से सटे अमरूद के पेड़ पर एक घोंसला बन चुका था। बहुत सुंदर और सुरक्षित से घोंसले में दो छोटे-छोटे अंडे भी दिखाई दे रहे थे। जैसे ही मैने पत्तियों के बीच नज़र आते अमरूद की ओर हाथ बढ़ाया, अंडों के पास दुबकी बैठी चिड़िया आशंकित हो गई। शायद उसे लगा कि मेरी कोशिश अंडों को नुकसान पहुंचाने की है। घोंसले से चीं-चीं कर उड़ती चिड़िया अब आक्रामक सी मुद्रा में थी।
कुछ पल रुकने के बाद मैं थोड़ा दूर हुआ। घोंसले से निगाह हटाकर चिड़िया को देखता रहा। अब तक चिड़िया मेरे बर्ताव को भांप चुकी थी। वो आश्वस्त होकर फिर घोंसले में रखे अंडों के पास आ बैठी। उसकी निगाहें अब भी मुझ पर थीं। यह और बात है कि उनमें पहले सा संशय नहीं था। मैंने धीरे से हाथ बढ़ाकर अमरूद तोड़ लिया। पत्ते व शाख हिलने के साथ थोड़ी सी हलचल घोंसले में भी हुई। चिड़िया बिना किसी प्रतिक्रिया के अंडों के पास बैठी रही। मैने गैलरी की मुंडेर पर दाना-पानी रखने का क्रम आरंभ कर दिया। मात्र तीन दिन बाद हालात बदल गए। अंडों से चूज़े बाहर आ गए। उनका लालन-पालन करती चिड़िया को अब गैलरी में मेरे देर तक खड़े रहने की कोई परवाह नहीं थी।
अमरूद तोड़ने की कोशिश भी अब उसे चिंतित नहीं करती थी। वो आराम से मुंडेर पर रखे दाने चुगती। वो भी बिना किसी भय के। विश्चास का एक अनाम सा नाता जो जुड़ चुका था हमारे बीच। शायद इसलिए कि वो एक चिड़िया थी और मैं एक इंसान।
कुछ दिनों बाद बच्चे में भी मुंडेर से हॉल के रास्ते किचन तक आने लगे। हमारी ग्वालियर से घर वापसी तक। काश, आपसी सामंजस्य और सह-अस्तित्व वाली भावना की यह समझ दो इंसानों के बीच भी इतनी तेज़ी से पनप पाती।
काश, किसी एक की संवेदना दूसरे को सहज स्वीकार्य होती। तो आज समाज और दुनिया मे अलगाव और अविश्वास नाम की कोई चीज़ नहीं होती।°
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

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