*1977 में दो बार दिल्ली की राजनीतिक यात्राएँ: सुनहरी यादें*
1977 में दो बार दिल्ली की राजनीतिक यात्राएँ: सुनहरी यादें
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उस समय 1977 में मेरी आयु लगभग साढ़े सोलह वर्ष रही होगी । पहली बार का संस्मरण दिल्ली जाने का उस समय का है जब आपातकाल (इमरजेंसी) हटाने की घोषणा हो चुकी थी तथा नए चुनाव का बिगुल बज चुका था । दिल्ली के रामलीला मैदान में लोकनायक जयप्रकाश नारायण की विशाल जनसभा होनी थी और उनको सुनने का उत्साह पूरे देश में था । मैं ,मेरे पिताजी श्री राम प्रकाश सर्राफ तथा श्री भोलानाथ गुप्त हम तीन लोग रामपुर से बस में बैठकर दिल्ली गए । पिताजी और भोला नाथ जी दोनों ही जनसंघ के पुराने कार्यकर्ता थे और बचपन से मित्र रहे थे । रामलीला मैदान खचाखच भरा था । दिल्ली की सभी सड़कों का रुख मानों रामलीला मैदान की ओर मुड़ चुका था । जब लौट कर आए तब जयप्रकाश जी की यह आवाज कानों में गूँज रही थी :”यह आखरी मौका है । अगर चूक गए तो फिर चुनाव और लोकतंत्र नहीं बचेगा।” उस जमाने में टेलीविजन शुरू तो हो गया था लेकिन निजी चैनल नहीं होते थे । केवल सरकारी दूरदर्शन तक ही सिमटा हुआ था और सरकारी दूरदर्शन पर जयप्रकाश नारायण का भाषण प्रसारित हो जाए , इसकी तो कल्पना ही नहीं की जा सकती थी । उल्टे हमें बाद में पता चला कि रामलीला मैदान की जनसभा में भीड़ को रोकने के लिए उस समय की एक लोकप्रिय फिल्म ठीक जनसभा के समय पर दूरदर्शन से प्रसारित की गई थी । लेकिन यह सारी कोशिशें काम नहीं आईं। लोग जयप्रकाश जी को सुनने के लिए बड़े उत्साह के साथ अपने-अपने घरों से गए थे । लौटकर हमने पुनः बस पकड़ ली तथा रामपुर वापस आ गए।
उसके उपरांत देश में आम चुनाव हुए और जनतंत्र के अभ्युदय के जिस विचार को जयप्रकाश नारायण ने पूरी शक्ति के साथ फैलाने की कोशिश की थी , वह जीता तथा लोकतंत्र की पुनर्स्थापना हो सकी । 1977 में ही दूसरी बार दिल्ली की राजनीतिक यात्रा का संयोग इसी तारतम्य में है । चुनावों में रामपुर लोकसभा सीट से जनता पार्टी के टिकट पर श्री राजेंद्र कुमार शर्मा चुनाव जीते थे । आप जनसंघ घटक के थे तथा यह उचित ही था कि स्वाभाविक रूप से पिताजी यह चाहते थे कि श्री शर्मा जी केंद्र में मंत्री बन जाएँ। इसके लिए दिल्ली जाकर श्री नानाजी देशमुख तथा अन्य नेताओं से मुलाकात करने की योजना बनी । प्रतिनिधिमंडल में सर्व श्री भगवत शरण मिश्रा ,भोलानाथ गुप्त तथा सतीश चंद्र गुप्त एडवोकेट शामिल थे। इस यात्रा में पिताजी मुझे भी अपने साथ ले गए थे , अतः सभी जगहों पर सभी नेताओं से मिलते समय मैं भी उपस्थित रहा । दिल्ली में हम लोग श्री राजेंद्र कुमार शर्मा के सरकारी आवास पर ठहरे थे । यह एक बड़ी कोठी थी जिसमें चार – पाँच व्यक्तियों के ठहरने का प्रबंध बहुत मामूली बात थी ।
दीनदयाल शोध संस्थान में नानाजी देशमुख से मुलाकात हुई । उनसे बातचीत करने का जिम्मा पिताजी ने पहले ही अपने ऊपर ले रखा था । सब लोग उनसे मिले । नानाजी देशमुख लोगों से घिरे हुए थे । दूर से ही पिताजी को देखकर उन्होंने कहा ” कहिए रामप्रकाश जी ! कैसे आना हुआ ? ”
पिताजी ने उनसे कहा “रामपुर को कुछ और शक्ति दीजिए ।” इसके बाद स्पष्ट रूप से शर्मा जी को मंत्री बनाने का आग्रह पिताजी ने किया । नानाजी देशमुख ने सारी बातों को सुना और उसके बाद फिर जब वह अपनी कार में बैठकर जाने लगे , तब उन्होंने पिताजी से कहा ” मैं लोकसभा जा रहा हूँ । कुछ और बात करनी हो तो मेरे साथ कार में बैठ लीजिए । ” पिताजी ने कहा ” सब बातें हो गई हैं । ठीक है ।” इसके उपरांत नानाजी देशमुख कार में बैठ कर चले गए ।
दिल्ली में श्री लालकृष्ण आडवाणी , श्री सुंदर सिंह भंडारी और श्री जगदीश प्रसाद माथुर के निवास पर भी हम लोगों के प्रतिनिधिमंडल ने उनसे भेंट करके इसी प्रकार के प्रश्न को आगे बढ़ाया था ।
लोकसभा की कार्यवाही देखने का अवसर भी इस यात्रा में मुझे प्राप्त हुआ । राजेंद्र कुमार शर्मा जी ने हम सब लोगों के लिए लोकसभा की कार्यवाही दर्शक – दीर्घा में बैठकर देखने का प्रबंध कर दिया था । जब हम दर्शक – दीर्घा में पहुँचे ,तब श्री जॉर्ज फर्नांडिस भाषण दे रहे थे । जितने समय हम बैठे , जॉर्ज फर्नांडिस का भाषण चलता रहा। सदन में शांति थी और अनुशासन देखा जा सकता था ।
संसद की कैंटीन में हम लोगों ने दोपहर का भोजन किया था । भोजन में एक बात मुझे याद आ रही है कि वहाँ पर जो सब्जी थी, उसमें प्याज पड़ी हुई थी ।अतः जब यह पूछा गया कि क्या बगैर प्याज की सब्जी नहीं है ? तब कैंटीन के संचालक ने कहा कि सब्जी में प्याज अवश्य पड़ी हुई है । तब हमने उस सब्जी को तो नहीं खाया लेकिन ऐसा भी नहीं कि बिना खाए रह गए हों। कुछ न कुछ खाने की व्यवस्था कैंटीन में हो गई । शर्मा जी उस समय हमारे साथ उपस्थित नहीं थे ।
आज वृद्धावस्था की दहलीज पर खड़े होकर जब मैं इन पुरानी यात्राओं का स्मरण करता हूँ तो यह मुझे राजनीतिक से कहीं ज्यादा तीर्थयात्राएँ जान पड़ती हैं, जिनका प्रत्येक पग निश्छल उमंग तथा निष्काम अभिलाषाओं से भरा हुआ था । परमात्मा ने मुझे महान व्यक्तियों का सहयात्री बनाया , इसके लिए परमात्मा का धन्यवाद तथा जिन महापुरुषों का मैं सहयात्री बना ,उनकी पावन स्मृति को शत-शत प्रणाम ।।
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लेखक : रवि प्रकाश पुत्र श्री रामप्रकाश सर्राफ , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451