संस्मरण
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मेरी गुरु मेरी प्रेरणा: डाक्टर विजयश्री भाटी
आज़ मैं आप सभी को ऐसी शख्सियत के बारे में बताना चाहूँगी जो मेरे लिए किसी दैवीय शक्ति के वरदान से कम नही था ,जी हाँ dr.विजयश्री भाटी मैम ज़िनके चेहरे की जादुई चमक,उनकी बेदाग छवि ,हमेशा चेहरे पर रहने वाली मुस्कुराहट और उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व ने पहली बार में ही मुझे उनकी तरफ खींचा था!!
बात 2013 -14 की है ज़ब घर में चर्चा होने लगी की मुझे बी.एड. की प्रवेश परीक्षा देनी है और फार्म लाकर रख दिया गया !मुझे पढ़ायी छोड़े 10 साल हो गये थे क्योंकी मेरी शादी 11वीं कक्षा में हो गयी थी और मैं शादी के बाद कभी स्कूल नही जा पायी थी ! दो बच्चों की माँ बनने के बाद मैने इंटरमीडियट 1999 और बी.ए. 2001-2003 में घूंघट तले परीक्षा दी थी और पास भी हुयी फिर घर व बच्चों की ज़िम्मेदारियों ने मुझे बाँध दिया! 10 साल बाद किस्मत ने एक बार फिर मुझे 33 साल की उम्र में परखने की कोशिश की!मैने घर में सबसे बोल दिया अगर मैंने प्रवेश परीक्षा पास किया तो मैं प्रतिदिन कालेज जाऊँगी ,सब मान गये और मैने प्रवेश परीक्षा पास करके रमा देवी कन्या महाविद्यालय नोएडा में एडमेशिन ले लिया!!
कालेज में पहले दिन सबका परिचय लिया जा रहा था,जहाँ मैने जींस टी- शर्ट में 350 लड़कियों को देखा वे सभी मुझसे बिल्कुल अलग थी,उनके आगे मैने अपने को शून्य पाया क्योंकी घूंघट तले मेरा आधा जीवन बिता था ! कहीं ना कहीं मेरा आत्म विश्वास ड़गमगा रहा था !कांपते हाथों से मैने माइक पकड़ी और जैसे- तैसे अपना परिचय दिया!वहीं पर मेरी पहली मुलाकात dr. विजयश्री भाटी मैम से हुयी ज़िन्होने मुझसे पूछा तुम बी. एड. क्यों करना चाहती हो ?मैने कहा मैम मैं उन लोगों की सोच बदलना चाहती हूँ ज़ो यह कहतें हैं कि शादी के बाद औरत कुछ नहीं कर सकती ! वह बोली शाबाश ! तुममें कुछ बात है!!
क्लास शुरू हुयी एक महीने तक कोई मेरा दोस्त नही बना,लड़कियां मुझे देखकर हँसती थी उनको ये लगता था आंटी जैसी दिखने वाली औरत पढ़ने क्यों आयी है ?पर मैं भी कमर कसकर आयी थी चाहे ज़ो हो ज़ाये मैं यहाँ से वापस नहीं जाऊँगी!विजयश्री मैम हमें “भारतीय शिक्षा का इतिहास,विकास एवं समस्याएं” पढ़ाती थी और क्लास में अक्सर मुझसे ही सवाल कर देती थी य़ा यूँ कह लिजिये उन्होंने मुझे सोने की तरह पहले आग में तपाया !कालेज में एक दिन उन्होंने एक लेखन प्रतियोगिता का आयोजन कराया,सबने उसको हल्के में लिया पर मैंने दिल खोलकर लिखा!करीब 15 दिन बाद उसका परिणाम आया और मैं प्रथम
आयी ! मेरी ख़ुशी का ठिकाना नही था पर मुझसे भी ज्यादा खुश मेरी गुरु थी,350 लोगों की तालियों के बीच मुझे अपने जीवन का प्रथम पुरस्कार मेरी गुरु के हाथों मिला !मेरे आँसू रुक नहीं रहे थे, उन्होंने बोला अरे पागल रो मत ! इन आँसुओं को सम्हाल कर रख तुम्हें यहाँ अभी बहुत कुछ करना है ! उसके बाद उन्होंने मुझे रानी लक्ष्मी बाई हाउस का उपकप्तान बना दिया और मुझे अलग बुलाकर समय- समय पर मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा देती थी और अक्सर कालेज आते -जाते समय अक्सर अपनी कार में मुझे बैठा लेती थी और घर तक छोड़ देती थी !उनकी प्रेरणा से मेरे अंदर का डर धीरे- धीरे खत्म हो रहा था! सारी लड़कियां मेरी दोस्त बन गयी थी,मैं आंटी से दीदी बन गयी !
यूँ तो सारे गुरु मेरे लिए बराबर थे पर ज़िन्होने मुझे निखारा वह एक ही थी विजयश्री मैम ! लोग पीठ पीछे हमारी बात भी बनाते थे पर हमने कभी ध्यान नही दिया!फिर कालेज में 15 अगस्त का आयोजन होने वाला था,मैम ने मुझे बुलाया और कहा आभा चार लड़कियां सेलेक्ट करो और तुम्हे स्टेज पर एक धमाकेदार परफारमेंस देनी है तुम्हे गाना गाना है ज़िसमे तुम्हारा हाउस पहले नंबर पर आना चाहिए ! मुझे काटो तो खून नही क्योंकी ज़ीवन में मैंने स्टेज पर कभी गाना नही गाया था पर उनके आदेश को मैं टाल भी नही सकती थी और मैंने तैय़ारी शुरू की मैंने एक गाना बनाया और 15 अगस्त के दिन मैंने गाया ! वह दैवीय शक्ति ही थी और गुरु का आशीर्वाद उस दिन मैंने ऐसा गाया कि सबके आँखों में आँसू थे और तालियों के बीच माइक पकड़े अवाक सी खड़ी मैं !!
उस दिन मैम मुझे अपने गले से लगाते हुये मेरी पीठ थपथपाते हुये बोली जानती थी मैं कि य़े सिर्फ तुम कर सकती हो ,तुमने बहुत अच्छा किया आभा..मैं तुम पर गर्व करती हूँ !उस दिन के बाद कालेज में जितने आयोजन हुये उन्होंने मुझे सबमें आगे रखा और मैं सेमिनार से लेकर कई आयोजनों में अपनी कविताओं व कहानियों से लोगों के बीच अपनी अलग पहचान बनाती गयी !आज़ मैं जो कुछ भी हूँ ,अपने भावों को शब्दों में पिरोकर कागज पर उकेर देती हूँ सब विजयश्री मैम की वजह से है ! उन्होंने मुझसे मेरी पहचान करायी ,एक डरी, सहमी,घूंघट तले जीवन बिताने वाली संकोची औरत आज़ बुलंद इरादों वाली औरत बन गयी !उनका मुझसे मिलना दैवीय शक्ति का ही चमत्कार था !
फेयरवेल में मैं उनसे लिपटकर खूब रोयी थी ! मेरे लखनऊ आने के बाद अचानक एक दिन उनका फ़ोन आया, आभा मैं कालेज की प्रोफेसर से प्रिंसीपल बन गयी और मैं य़े ख़ुशी तुमसे शेयर करना चाहती हूँ , तुम्हारी बहुत य़ाद आती है बेटा कभी नोएडा आना तो कालेज ज़रूर मिलने आना..मैं बहुत खुश थी उनको प्रणाम करते हुये मैने उनको हार्दिक बधाई दिया!मैं बहुत भाग्यशाली छात्रा रही हूँ ज़िसके सारे टीचर आज़ भी मुझसे जुड़े हैं ,विजय श्री भाटी मैम अपनी बेदाग छवि और प्रखर व्यक्तित्व के बलबूते आज़ उसी कालेज की प्रधानाचार्या हैं ज़िसकी कभी मैं छात्रा रही हूँ ! हमारा गुरु- शिष्या का सम्बंध आज़ भी वैसा ही है !मेरी प्रेरणा मेरी गुरु को सादर प्रणाम!!
आभा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश