संस्मरण #पिछले पन्ने (11)
1980 का दशक#खासकर टीन एजर्स छात्रों के लिए यह उम्र का वह दौर था,जब किसी बाल मन में निर्माण और विध्वंश दोनों तरह के विचारों का उदय एक साथ होता है। आश्चर्य था कि उस समय हाॅस्टल में कुछ साहसी छात्र जो स्वयं को बाॅस कहलाना अधिक पसंद करता था,वह किसी दूसरे छात्र को डराने धमकाने के लिए कहीं से कट्टा और पिस्टल भी जुगाड़ कर ले आता था और कुछ डरपोक छात्रों के समक्ष अपनी शक्ति का खुला प्रदर्शन कर फिर इन अस्त्र शस्त्र को वापस रख आता था। अस्त्र-शस्त्र असली होता था या नकली,ये शोध का विषय है। हॉस्टल में शिक्षकों के लिए कभी-कभी विशेष खाना बनता था। यह बात कुछ छात्रों को पच नहीं पा रही थी और वह अक्सर इस चक्कर में रहता था कि कैसे बन रहे विशेष खाना में किरोसीन तेल डाल कर शिक्षकों को मजा चखाया जाए ? गुरु के लिए शिष्य का ऐसा उत्तम विचार गुरु के प्रति सम्मान के भावना की पराकाष्ठा थी। हद तो तब होती कि जब रसोईयों से नजर छुपाकर रात के अंधेरे में गुरुभक्ति की भावना से ओतप्रोत गुणवान छात्रों द्वारा बन रहे खाना में किरोसिन तेल डाल भी दिया जाता था। इस पर आश्चर्य की बात ये थी कि शिक्षक खाना बनाने वाले रसोइयों के लापरवाही की हल्की-फुल्की शिकायत करने के बाद उन्हें चेतावनी देते हुए, वही खाना किसी तरह खा लेते। इससे छात्रों की सारी मेहनत पर पानी फिर जाता था,जिससे उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुॅंच जाता। घटना को अंजाम देने के बाद जिस क्रेडिट का सच्चा हकदार वह था,वह क्रेडिट छात्रों को नहीं मिल पाता। इस कारण से इस तरह का मेधावी छात्र तिलमिला कर रह जाता। क्रोधित छात्र अपने इस मिशन को अपनी असफलता के रूप में देखता और ये असफलता उनकी इज्जत पर बन आती। इसके बाद वे फिर से फुल प्रूफ नई योजना के कार्यान्वयन पर अपना बहुमूल्य दिमाग लगाना प्रारंभ कर देता।
पता नहीं क्यों ? पिछली बातों को याद करने के बहाने हेड मास्टर साहब की चर्चा बार बार हो जाती है। शायद यही बहाना ही उनके प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलि देने का सशक्त माध्यम हो। लेकिन,इसमें कोई संशय नहीं है कि वे अपने जमाने के एक ऐसे शख्स थे,जिनका अपने बल पर बहुत छात्रों के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाकर उसके आगे के रास्ते को सुगम बनाने में महत्वपूर्ण योगदान है। अपने समय में बेहतर ढ़ंग से अपने लक्षित कार्यों को निष्पादित कर चुपके से वे दुनिया से निकल गये। छात्रों में पढ़ाई के प्रति जिजीविषा जगाकर विद्यालय परिसर में पढ़ाई का परस्पर प्रतिस्पर्धी माहौल उनकी मेहनत का परिणाम था। इसी वजह से पढ़ाई से हमेशा दूर भागने वाला छात्र भी उनके समय पढ़ाई में बेहतर करने की चाह में अन्य विकल्प की तलाश भी कर रहा था। चुपचाप स्कूल के पीछे माॅं चण्डी के स्थान में अपना सर झुका कर स्वयं के लिए विशेष उर्जा की याचना माॅं चण्डी से करता,जिससे उसके दिमाग में ज्ञान की बत्ती झकाझक जले और वो भी एक अच्छा छात्र कहलाने का सम्मान पा सके। जहाॅं पढ़ाई और अनुशासन की बात होती थी,तो वहाॅं हेड मास्टर साहब का जो चरित्र उभर कर आता है,वहीं दूसरी ओर किसी विशेष अवसर पर इसके समानांतर उनका दूसरा चरित्र भी उभर कर सामने आता है,जिसकी चर्चा मेरे द्वारा पूर्व में की भी गई है। खासकर, मुझे याद है कि अनंत पूजा में अधिकांश छात्र हाॅस्टल में ही रहते थे। पूजा में घर नहीं जाने की वजह से छात्रों की धार्मिक भावना आहत नहीं हो, इसलिए वे हाॅस्टल में अनन्त पूजा का आयोजन करते थे और स्वयं पूजा पर बैठते भी थे। पूजा के बाद सभी छात्रों को अपने हाथ में अनन्त अपने सामने पहनवाते थे। उस दिन हॉस्टल में छात्रों के लिए कुछ विशेष खाना भी बनता था। उस दिन उनका कोमल व्यवहार देखने के बाद किसी भी कोण से नहीं लगता था कि क्या ये वही व्यक्ति हैं, जिनके भय से हम सभी छात्रों की सांसें हमेशा फुली हुई रहती है और स्वतंत्र देश में रहने के बावजूद भी इनके पास ही हमलोगों की स्वतंत्रता गिरवी पड़ी है।