संस्कृति
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बड़े शहरों में फ्लैट संस्कृति!!!!
अब घरों में #देहरी नहीं होती!!
जिसे देख समझाया था, कभी
देहरी पार करने का मतलब,
अब घुटनों चलते बच्चे भी,
पार कर, हो जाते हैं घर से बाहर।
परिंदों की तो क्या कहें,
मनुष्यों के बोल, सुनाई नहीं देते,
मिलें किस तरह??घरों के दरवाजे
खुले दिखाई नहीं देते।
अब कोई आंगन नहीं होता
जहां शादी ब्याहों में गाया जाता था
हम तो रे बाबुल,
तोरे अंगना की गैया,चिरैया।
फिर भी कई बार
कैद कर दी जाती हैं
बिना खूंटे, पिंजरे के भी
संस्कारों की दुहाई देकर।
___ मनु वाशिष्ठ