संस्कृति प्रवीर संभालें !
समर साध रहा समय है , सुविचारों संस्कारों का ,
वीरों के बलिदानों पर , निंदित हर विकारों का ;
अपनी छाती पर अपनी संस्कृति नहीं लूटने देंगे ,
गोवंश नहीं कटने देंगे , समरसता नहीं फूटने देंगे |
अब घर सुरक्षित नहीं रहा , अपनों पर चलती अपनों की आरी,
लंपट का चरित्रहीन से हो गयी है यारी ,
यदि कहीं सुसुप्त प्रबुद्ध जन हों , करें विराट तैयारी ,
लूट संस्कृति का बचा लें , मिटा-लें मिलकर घातक यह बिमारी |
कुछ कुलटों ने समाज में विष व्याप्त कर डाला ,
धन खातिर अपना निधान-विधान नष्ट कर डाला ,
यदि कहीं संभव हो , संगठित हो प्रवीर , संभालें ;
डूबी नैतिकता के रक्षक बन, मानवता को भी बचालें !
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अखंड भारत अमर रहे
✍️ आलोक पाण्डेय